बाबू जगजीवन राम का जन्म 5 अप्रैल, 1908 को बिहार में भोजपुर के चंदवा गांव में हुआ था। एक दलित पारिवारिक पृष्टभूमि में अति सामान्य किंतु संत पिता श्री शोभी राम एवं माता श्रीमती बासंती देवी की धार्मिक प्रवृति ने उनके अंदर जो संस्कार निर्मित किया था, आजीवन उनके लिए प्रेरक संबल रहा। अपने पैतृक गांव के विद्यालय से प्राथमिक शिक्षा पूरी करने के बाद बाबू जगजीवन राम ने 1931 में कलकत्ता से स्नातक की डिग्री ली।
अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद बाबू जी ने स्वतंत्रता संग्राम में महात्मा गांधी के नेतृत्व में सक्रिय भूमिका निभाई। इसके साथ ही सामाजिक न्याय के लिए एवं अपृश्यता के खिलाफ हमेशा लड़ाई लड़ी। वे सभी जाति और धर्म के लोगों को जोड़ना चाहते थे, ताकि भारत की एकता हमेशा बनी रहे। दलित एवं कमजोर लोगों के कल्याणार्थ उनके दृढ़ समर्पण और निरंतर संघर्षरत रहने की वजह से उन्हें “दलितों का मसीहा’ कहा जाता है।
जगजीवन राम का राजनीतिक जीवन 1936 से शुरू हुआ, जब पहली बार उन्हें बिहार विधान परिषद के सदस्य के रूप में नामित किया गया। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद 1952 से 1984 तक लगातार सांसद चुने गए एवं सबसे लंबे समय तक (करीब 30 साल) केंद्रीय मंत्री रहे। वे जिस-जिस पद पर रहे, वहीं अपनी अमिट छाप छोड़ी। खाद्य और कृषि मंत्री के रूप में उन्होंने देश में भीषण सूखे का मुकाबला किया। हरित क्रांति के अग्रदूत बनकर भारत को खाद्यान के मामले मेें आत्मनिर्भर बनाया। श्रम मंत्री के रूप में मजदूरों की स्थिति में आवश्यक सुधार लाने और उनकी सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा के लिए विशिष्ट कानूनी के प्रावधान किए। रक्षा मंत्री के रूप में उनके कुशल एवं प्रेरणादायी नेतृत्व ने सारे देश एवं भारतीय सेना को पाकिस्तान के हमले से निपटने के लिए प्रोत्साहित किया, जिसके परिणामस्वरूप एक नया राष्ट्र बांग्लादेश बना। बाबू जगजीवन राम की ही सूझबूझ का परिणाम था कि करीब 96 हजार पाकिस्तानी सैनिकों ने भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। भारत और रूस का ऐतिहासिक शांति, मैत्री और सहयोग संधि बाबूजी की देन थी। रेलमंत्री के रूप में रेलवे का आधुनिकीकरण के साथ-साथ रेलवे में अनुसूचित जाति एवं जनजातियों के लिए आरक्षण का दरवाजा खोला। यह कहना गलत होगा कि बाबू जगजीवन राम ने जिस-जिस मंत्रालयों एवं विभागों में हाथ लगाया, उसे पूरी तरह सफल बनाया।
बाबू जगजीवन राम सच्चे देशभक्त, सच्चे धर्मनिरपेक्ष नेता, महान प्रशासक एवं इन सबसे ऊपर भारत के सच्चे सपूत थे। पूरा राष्ट्र उनकी सेवाओं एवं बलिदान के लिए कृतज्ञ है। बाबूजी का देश एवं लोगों के लिए प्रचुर एवं स्थायी प्यार ध्रुवतारा की तरह है, जो आज एवं आने वाली अनगिनत पीढ़ियों के लिए हमेशा ही प्रेरणादायक रहेगा। बिना किसी कड़वाहट एवं द्वेष के वे सबके मित्र एवं किसी के भी दुश्मन नहीं थे। शायद ही किसी व्यक्ति में एक साथ देशभक्ति एवं मानवतावाद का ऐसा मिश्रण देखने को मिलता है। मानवता के ऐसे बेमिसाल व्यक्तित्व के आगे हम श्रद्धा से सर नवाते हैं।
डाॅ.वीणा सिंह, रिसर्च फेलो जगजीवन राम संसदीय अध्ययन एवं राजनीतिक शोध संस्थान, पटना।
