अगर खिलाफ हैं, होने दो, जान थोड़ी है
ये सब धुँआ है, कोई आसमान थोड़ी है
ये सब धुँआ है, कोई आसमान थोड़ी है
लगेगी आग तो आएंगे घर कई ज़द्द में
यहाँ पे सिर्फ हमारा मकान थोड़ी है
यहाँ पे सिर्फ हमारा मकान थोड़ी है
मैं जानता हूँ की दुश्मन भी कम नहीं लेकिन
हमारी तरह हथेली पे जान थोड़ी है
हमारे मुंह से जो निकले वही सदाक़त है
हमारे मुंह में तुम्हारी जुबां थोड़ी है
जो आज साहिब-इ-मसनद है कल नहीं होंगे
किराएदार है जाती मकान थोड़ी है
सभी का खून है शामिल यहाँ की मिटटी में
किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है
A Must Watch Video, Dr. Rahat Indori is Reading his Poetry
Written by Rahat Indori
Rahat Indori is an eminent Urdu language poet and a bollywood lyricist, prior to this he was a pedagogist of Urdu literature at Indore University.
