बिहारियों की औसत आयु 10 साल बढ़ी
बीते 25 वर्षों में बिहार का सामाजिक-आर्थिक ताना-बाना ही नहीं बदला, जीवन और जीवनशैली भी बदल गई है। इस बदलाव ने बीमारियों और उसके कारकों के स्वरूप भी भारी उलटफेर किया है। अच्छी बात यह है कि बिहारियों की औसत आयु 10 साल बढ़ी है। चेतावनी वाली बात यह है कि ढाई दशक पहले भी राज्य में सर्वाधिक मौतें डायरिया से होतीं थीं, आज भी हो रहीं हैं।
दूषित पानी से होने वाली बीमारी में 50% की गिरावट आई
दूषित पानी से होने वाली इस बीमारी का दूसरा कारण स्वच्छता और भोजन शैली भी है। हालांकि संख्या में 50% की गिरावट आई है। इसी कालखंड में राज्य में हृदय रोग, फेफड़े के मरीज, अनीमिया, जन्मजात विकार, कान-आंख जैसी इंद्रियों के रोग, कमर व पीठ दर्द, पक्षाघात, सड़क दुर्घटना से होने वाली मौतें/अपंगता व चर्म रोगों में तेजी से इजाफा हुआ। विशेषज्ञों के मुताबिक अधिकांश रोग जीवनशैली, खान-पान, तनाव, पहनावा, तकनीक के बढ़ते इस्तेमाल से बढ़े हैं। बीमारियों से होने वाली मौतों और अपंगता के औसत में दोगुना वृद्धि हुई है।
बिहार जैसी जनसांख्यिकी व समाजार्थिक सूचकांकों वाले दुनिया के देशों में बीते 26 सालों में 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में मृत्यु दर 127 प्रति हजार से घटकर 66.4 हो गई है। बिहार में इस मोर्चे पर अपेक्षाकृत अधिक सुधार हुआ है।
चिकित्सा व्यवस्था व अार्थिक हालत में बदलाव से बढ़ी उम्र
सुखद यह है कि इस अवधि में सूबे के वाशिंदों की औसत आयु 10 साल बढ़ गई है। चिकित्सकीय मोर्चे पर हुआ विकास/सुधार, लोगों की माली हालत में सुधार इसकी बड़ी वजह है। खसरा और टेटनस से होने वाली मौतों पर तो एक प्रकार से काबू ही पा लिया गया है। समय पूर्व प्रसव और टीबी को भी काफी हद तक नियंत्रित कर लिया गया है। लेकिन सांस की बीमारियां, फेफड़े के मरीजों की संख्या बताती है कि हवा जहरीली हो रही है।
