अतीत में जातिवाद के खूनी संघर्ष के गवाह रहे बिहार के भोजपुर क्षेत्र में नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाले एनडीए और नीतीश कुमार नीत महागठबंधन के बीच कांटे के मुकाबले की स्थिति है। करो या मरो की स्थिति वाले संघर्ष में यहां के लोगों के समक्ष रोजगार और शिक्षा प्रमुख मुद्दा है। इस क्षेत्र से दलित गांवों के काफी संख्या में युवा आजीविका की तलाश में पलायन कर रहे हैं और पहचान की राजनीति प्रखर है।
चुनावी मसलों पर हर कहीं चर्चा जारी
इसी भोजपुर क्षेत्र में जगदीशपुर आता है जहां वीर कुंवर सिंह ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का झंडा बुलंद किया था और क्षेत्र में लोगों के बीच आदर्श बन गए। आज इसी क्षेत्र में चाय के दुकानों पर चुनाव से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर चर्चा-परिचर्चा जारी हैं। तरारी विधानसभा क्षेत्र में सिकरहट्टा मुसहर टोली के रामजी मांझी का कहना है कि यहां युवाओं के लिए रोजगार नहीं है, इसलिए उन्हें आजीविका की तलाश में घरबार छोड़कर जाना पड़ता है। दलितों के कई परिवारों को शादी से पहले घर छोड़कर कमाने बाहर जाना पड़ता है ताकि कुछ पैसा कमाकर वे अपना परिवार शुरू कर सकें।
कविताओं में नजर आता है पलायन का दर्द
इस क्षेत्र में हालांकि काफी उपजाऊ जमीन है, लेकिन संसाधनों पर कुछ लोगों का नियंत्रण है और बड़ी संख्या में लोगों को आजीविका के लिए बाहर जाना पड़ रहा है। पलायन के इसी दौर में भोजपुरी साहित्य में कई उपमाएं दी गई है जिसमें ‘विदेशिया, परदेशिया और बिटोहिया’ शामिल हैं। पलायन का दर्द इस क्षेत्र के सुविख्यात साहित्यकार भिखारी ठाकुर की कविताओं में भी नजर आता है जिन्हें ‘भोजपुर का शेक्सपीयर’ कहा जाता है। भिखारी ठाकुर के नाटक ‘विदेशिया’ में एक पत्नी की मार्मिक कहानी को दर्शाया गया है जिसके पति को काम की तलाश में पलायन करना पड़ता है।
