यह विजय हमारे सोच की है, हमारे सपनों की है|
इस जनादेश ने ना केवल बिहार के लिए ही, बल्कि भारत, और कहते हुए बिलकुल ही हिचक नहीं हो रही है कि शायद विश्व की साझा प्रगति के आयाम को सच में असीमित सा कर दिया है, क्यूँकी प्रगति की लहर जब दौड़ती है, तो लोगो को अपना दीवाना बना देती है| नयी विधि, नए विधाताओं का जन्म होता है; और सफलता तो आसमान छू सकती है, फिर दुनिया का दूसरा कोना क्या चीज़ है!
पथरीली ज़मीन को पिछले कुछ वर्षों के प्रयास ने तो समतल कर ही दिया है; अब समय आ गया है कि उस पर हम अपने सपनों का वो घर बनाएं जिसके बारे में हम सब भाईयों ने शायद आपस में गहन चर्चा न की हो मगर मन ही मन उसे बनाने का संकल्प तो लिया ही है| जिन परिस्थितियों ने भी हमें प्रवासी होने के लिए बाधित किया, आज ऐसा आभास तो हो रहा है कि हम उन परिस्थितियों को मोड़ ही नही मरोड़ भी सकते हैं| प्रकृति हमें अपने ही ढंग से सन्देश दे रही है|
विकास हमें सौगात में मिली है, उन्नति के इस रस्ते पर चलना हमें ही है|
सरकार विकास का केवल माध्यम होगी, सूत्रधार होंगे हम|
हम ही बनाएंगे, हम ही कहलायेंगे, एक दिन – विकासशील से विकसित|
उम्मीदों के साथ,
गौतम