धर्मनगरी काशी में रहनेवाली नाजनीन अंसारी गंगा-जमुनी संस्कृति की एक मिसाल पेश करती हैं। नाज़नीन नमाज अदा करने के साथ-साथ हनुमान चालीसा पढ़ती हैं और बच्चों को हनुमान जी के बारे में जानने के लिए प्रेरित भी करती हैं। नाजनीन को देखकर वैसे तो हर कोई चौंक सकता है लेकिन जिसने बनारस की विरासत और यहां के प्रभाव को करीब से देखा है उसके लिए ये चौंकने वाली बात कतई नहीं है।
हिजाब पहनने वाली ये महिला जन्म से भी मुस्लिम है और आस्था से भी नाजनीन रोजाना नमाज़ पढ़ती हैं और रमजान के महीने में रोज़ा रखती हैं, लेकिन नमाज़ और रोजे के साथ साथ वो उतनी ही सहजता से एक धर्मनिष्ठ हिन्दू की तरह हनुमान चालीसा का पाठ करते भी दिखाई दे जाती हैं।
नाज़नीन को देखकर ये सवाल सहज ही मन में उठता है कि आखिर मजहब के नाम पर टकराव क्यों है। नाज़नीन एक मिसाल हैं सांप्रदायिक सौहार्द की, नाज़नीन मिसाल हैं भारतीय संस्कृति और परम्परा की इसके साथ ही नाज़नीन आइना हैं उन लोगों के लिए जिनके लिए मजहब आग लगाने का एक जरिया भर है।
नाजनीन अंसारी का कहना है कोई भी धर्म आपस मे लड़ना नहीं सिखाता। आपस में मेल मोहब्बत ही बनारस गंगा-जमुनी तहजीब के लिए जाना जाता है इसलिए बनारस में रहकर एक दूसरे से दूर कैसे रह सकते हैं? नाज़नीन के दिन की शुरुआत हिन्दू और मुसलमान के बींच की खाई पाटने की कोशिशों के साथ होती है और इन्हीं कोशिशों के बीच उनकी शाम भी होती है।
हिन्दू धर्म के बारे मुसलमानों के बीच फैली गलतफहमियों को दूर करने के लिए नाज़नीन ने हनुमान चालीसा से शुरुआत की और उसे उर्दू भाषा में भी लिखा है ताकि उर्दू पढ़ने वाले भी सहजता से उसे पढ़ सकें, लेकिन नाज़नीन की कोशिशों का सिलसिला यहीं नहीं रुका उन्होंने शिवचालीसा, दुर्गाचालीसा को भी उर्दू भाषा में लिख डाला। नाज़नीन का प्रयास जारी है और इन दिनों वो भारत के सबसे लोकप्रिय धर्मग्रंथों में से एक श्रीरामचरित मानस को उर्दू भाषा में लिख रही हैं।
Source: IBN7
