दो साल पहले बिहार के छपरा जिले में शुरु हुआ रेडियो मयूर सफलता के कई आयामों को छू चुका हैं। शुरुआती परेशानियों का सामना तो हर किसी को करना पड़ता है। रेडियो मयूर को भी कुछ दिक्कतों का सामना करना पड़ा। सबसे बड़ी परेशानी थी लोगों कि ये सोच कि आज के वक्त में लोग रेडियो सुनते ही नहीं है। लेकिन, दो साल बाद आज ये बात गर्व से कहीं जा सकती है कि रेडियो मयूर छपरा के लोगों की पहली पसंद बन चुका है।
खुले आसमान के नीचे बच्चों की पढ़ाई को रेडियो से जोड़ने की अनोखी पहल
इन श्रोताओं में से ही एक लड़की ने कुछ वक्त पहले रेडियो मयूर की टीम से संपर्क किया। अनिशा नाम की इस लड़की ने बताया कि वो विश्वविद्यालय में पढ़ती है और अपने खाली समय में मोहल्ले के गरीब बच्चों को अपनी सहेलियों के साथ मिलकर पढ़ाती है। इसके लिए वो उन बच्चों से किसी तरह से कोई पैसा नहीं लेती हैं।
अनीशा की इस जानकारी के बाद रेडियो मयूर की टीम वहां पहुंची और देखा कि बच्चे यहां खुले आसमान के नीचे बैठकर पढ़ रहे थे। प्रतिभा के धनी इन बच्चों से जब हमारी टीम ने बात की तो हमें मालूम चला कि ये सभी रोजाना रेडियो मयूर सुनते हैं। इन बच्चों के मुंह से ये बात सुनकर हम सभी के चेहरे खिल गए।
दरअसल रेडियो मयूर ने कई ज़िन्दगियों में अपना प्रभाव छोड़ा है। आज से 6 महीने पहले तक दिनभर में श्रोताओं के 20-25 फोन कॉल्स आते थे, आज ये आंकड़ा बढ़कर 80 से 100 तक पहुंच गया हैं। श्रोता इसे अपने जीवन का अभिन्न अंग मानने लगे हैं। कहते हैं कि अब तो आदत पड़ गयी है रेडियो मयूर की। परिवार का हिस्सा है अब रेडियो मयूर।
रेडियो मयूर के कई शो
रेडियो मयूर के कई शो तो इतने लोकप्रिय हैं कि उन्हें सुनने के लिए लोग अपना शेड्यूल तक बदल लेते हैं। गुड मॉर्निंग छपरा, छपरा अपडेट्स , मयूर इंग्लिश टिप्स , आपन बोली आपन बात और साँझ के चाय लोगों के बीच विशेष रूप से पसंद किए जाते हैं।
पत्रकारिता में कई वर्षों के अनुभववाले अभिषेक अरुण ने अपने नेतृत्व में पिछले दो साल में रेडियो मयूर को लोगों के बीच एक अलग जगह मुकाम दिलाने का काम किया है। रेडियो मयूर अब तीसरे साल में प्रवेश कर रहा है। रेडियो मयूर ने अब तक श्रोताओं के मन की हर बात को समझा है, वो उनके साथ उनके हर दुख, हर खुशी में खड़ा रहा है।
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