A Poet at Play January 13Krishna Kumar Comment वे डरते हैं, किस चीज़ से डरते हैं वे तमाम धन-दौलत, गोला-बारूद पुलिस-फ़ौज के बावजूद ? वे डरते हैं, कि एक दिन निहत्थे और ग़रीब लोग, उनसे [...]
जागरण / गोरख पाण्डेय January 10Subhikhya Comment बीतऽता अन्हरिया के जमनवा हो संघतिया सबके जगा द गंउवा जगा द आ सहरवा जगा द छतिया में भरल अंगरवा जगा द जइसे [...]
समाजवाद – गोरख पाण्डेय January 5Subhikhya Comment समाजवाद बबुआ, धीरे-धीरे आई समाजवाद उनके धीरे-धीरे आई हाथी से आई, घोड़ा से आई अँगरेजी बाजा बजाई, समाजवाद… नोटवा से आई, बोटवा से [...]